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मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

''बात समझ लो मुन्ना जी ...''

प्यारे-प्यारे दादा जी ,हमे बचाओ दादा जी ,
दादी हमसे रूठ गयी हैं ,उन्हें मनाओ दादा जी .
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प्यारे प्यारे मुन्ना जी ,एक बात बताओ मुन्ना जी ,
क्यों रूठी है दादी तुमसे ,की शैतानी मुन्ना जी ?
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हम तो क्रिकेट खेल रहे थे ,छक्का मारा दादा जी ,
गेंद उछल कर उनके लग गयी ,
हम क्या करते दादा जी ?
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प्यारे प्यारे मुन्ना जी ,माफ़ी मांगों मुन्ना जी ,
कान पकड़कर ;मुर्गा बनकर  ,उन्हें मनाओ मुन्ना जी .
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प्यारी प्यारी दादी जी ,कान पकड़ते दादी जी ,
अब ऐसे न हम खेलेंगे ,करते वादा दादी जी .
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प्यारे प्यारे मुन्ना जी ,माफ़ किया तुम्हे मुन्ना जी ,
चोट किसी के नहीं मरते ,बात समझ लो मुन्ना जी .
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                               शिखा  कौशिक

मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

मेरी दादी

मेरी दादी बड़ी निराली ;
रखती हर ताले की ताली ,
उनके आगे पूंछ हिलाते ;
बन्दर ,कुत्ता ,बिल्ली काली ,
मेरी दादी बड़ी निराली !
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एक रोज एक बन्दर आया ;
दादी को उसने धमकाया ,
दादी ने भी दम दिखलाया ;
उठा के लाठी उसे भगाया ,
मैं बोला फिर बजा के ताली ;
मेरी दादी करती रखवाली ,
मेरी दादी बड़ी निराली !
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एक रोज माँ! ने मुझे डांटा   ;
मार दिया था गाल पे चांटा ,
दादी ने माँ! को हडकाया ;
गोद बिठाकर मुझे चुपाया ,
मैं बोला फिर बजा के ताली ;
मेरी दादी है दिलवाली ,
मेरी दादी बड़ी निराली !
[दादी बहुत अच्छी होती है .सभी बच्चों को उनसे न केवल प्यार करना चाहिए बल्कि उनका सम्मान भी करना चाहिए .]
                                                   शिखा कौशिक

शनिवार, 4 दिसंबर 2010

bachche hain phool

[गूगल से साभार ] 

फूल के जैसे प्यारे होते,फूल के जैसे कोमल.
मिलकर इनसे खिल जाता है मेरे जीवन का हर पल,
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फूल की भांति सुगंध बिखेरें फूल की भांति हँसते,
फूल की भांति प्यार दिखाकर सबसे खुश हो मिलते.
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बच्चों आप के बारे में ही कहूं मैं मन से हंसकर,
आप आयें तो आती हैं खुशियाँ सबके घर-घर.

शनिवार, 27 नवंबर 2010

ek bachche ki kahani

आओ बच्चों तुम्हे मिलाऊँ एक छोटे से बच्चे से,
कहना ना माने अपने बड़ों का ऐसे अक्ल के कच्चे से.
मम्मी-पापा बहुत रईस
देते उसे खूब पॉकेट मनी
अपने साथ के बच्चों में वो
बनता फिरता बहुत धनी
इधर-उधर के खर्चे करता जिन्हें ना करते अच्छे से, 
कहना ना माने अपने बड़ों का ऐसे अक्ल के कच्चे से.
पैसे के कारण उसे मिले कुछ
स्कूल में बच्चे बिगडेल
जिन की संगति में रह-रहकर
कर बैठा वो गंदे खेल
अपनी अक्ल पर चलकर ही तो भटक गया वो रस्ते से,
कहना ना माने अपने बड़ों का ऐसे अक्ल के कच्चे से.
देख के उसकी बुरी आदतें
स्कूल से घर पर शिकायत आई
पढ़ बेटे की गलत हरकतें
मात-पिता के मुख शर्म थी छाई
जाकर उसका कमरा देखा मिली अफीम थी बस्ते से,
कहना ना माने अपने बड़ों का ऐसे अक्ल के कच्चे से.
सुधार ही देंगे बेटा अपना
मम्मी-पापा ने सौगंध ली
बेटे के सामने खुद ही अपने
जीवन की सच्चाई खोली
मिलता है यहाँ सब कुछ बेटे काम करो जब मेहनत से,
कहना ना माने अपने बड़ों का ऐसे अक्ल के कच्चे से.
पैसा तुमको हम ना देंगे
मित्रो से जाकर ले लो
कहना हमारे बेटे नहीं हो
अब तुम मेरे संग खेलो
जाके कहा जब उसने ये सब दिया निकाल उसे दस्ते से,
कहना ना माने अपने बड़ों का ऐसे अक्ल के कच्चे से.
देख के उसकी बुद्धि संभली
उसने मन में ठान ली
मानेगा मम्मी-पापा की
बात ये उसने जान ली
कैसा लगा मिलकर अब बोलो इस छोटे से बच्चे से,
कहना भी माने करना भी जाने ऐसे मन के सच्चे से.

बुधवार, 24 नवंबर 2010

aisi sunao kahani

नानी सुनाओ हमे एक कहानी
जिसमे हो एक राजा-रानी
और प्यारी सी राजकुमारी  !
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नानी सुनाओ हमे एक कहानी
जिसकी हो हर बात निराली
चाचा-चाची हो उसमे या हो मामा-मामी
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नानी सुनाओ हमे एक कहानी
उसमे हो सब बाते प्यारी
बस इतनी सी शर्त हमारी
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                                                       शिखा कौशिक         

शनिवार, 13 नवंबर 2010

bal divas ki shubhkamnayen

प्यारे बच्चो,
                 कल  बाल दिवस है, बाल दिवस यानि हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री और तुम बच्चो के प्यारे चाचा पंडित नेहरू का जन्म दिवस ;इस अवसर पर आपकी दीदी शिखा आपके लिए लाई हैं एक छोटी सी कविता,बताना कैसी लगी------
    "फूलों के जैसे महकते रहो,
   पंछी के जैसे चहकते रहो,
   ये है हमारी शुभ-कामना,
   हँसते रहो ,मुस्कुराते रहो.

निसदिन तुम कुछ सीखो नया,
जलाते रहो ज्ञान  का तुम दिया,
ये है हमारी शुभ-कामना,
हँसते रहो ,मुस्कुराते रहो.
सूरज की भांति चमकते रहो,
तितली के जैसे मचलते रहो,
ये है हमारी शुभ-कामना,
हँसते रहो,मुस्कुराते रहो.

मम्मी डेडी का आदर करो,
सुन्दर भावों से मन को भरो,
ये है हमारी शुभ-कामना,
हँसते रहो,मुस्कुराते रहो.

बुधवार, 10 नवंबर 2010

prerna

नन्हे फरिश्तों,
                  अब परीक्षाएं पास आ गयी हैं और अब आपको पढाई में ठीक वैसे ही जुट जाना चाहिए जैसे की चीटीं और शेर अपने काम में जुटे रहते हैं.मैं इस लिए आपके लिए हमारा आपका प्यारा ब्लॉग से एक लिंक आपको दे रही हूँ जिस पर जाकर आप एक छोटी सी कविता के जरिये इनके कार्य करने के तरीके को जानchhenti aur sher सकते हैं..
    अच्छा अब पढाई करो मैं चलती हूँ.अगली बार कुछ और लूंगी..

सोमवार, 1 नवंबर 2010

जंगल में भी मनी दिवाली,



 : Little Boy and Dog Stock Photo
जंगल में भी मनी दिवाली,


..
जंगल में भी मनी दिवाली,
 : Bengal cat Stock Photo


 : teddy bear Stock Photo
नाचे भालू बजा ke ताली ,
बन्दर ने भी दीप जलाये,
कोयल कू-कू गीत गाये ,
रसगुल्ला खरगोश ने खाया,
बर्फी खा गयी बिल्ली काली ,
जंगल में भी मनी दिवाली.
 : Young brown tibetan terrier puppy Stock Photo
शेर कर रहा लक्ष्मी पूजा,
हाथी का मुहं फिर भी सूजा,
उसको नहीं मिले पटाखे,
घर के अन्दर बाहर भागे,
जंगल में हलचल कर डाली,
जंगल में भी मनी दिवाली.
                               शिखा कौशिक 

शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

bachhon ki samajh

प्यारे बच्चों,
              मैंने कई दिन तक इंतजार किया लेकिन चैतन्य को छोड़कर किसी ने भी मेरे प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया और चैतन्य कि समझदारी तो देखिये कि उसने मेरे ब्लॉग कि तारीफ कि और चुप्पी साध ली.मैं आप सभी से एक बार और आशा करती हूँ कि आप मेरे प्रश्नों के उत्तर देंगे.
     चलिए आज आपसे और आगे बात करते हैं.ये तो आप भी जानते हैं और मैं भी कि आप बहुत समझदार होते हैं.बड़ों द्वारा आपको छोटा समझकर आपकी यदि हंसी उड़ाई जाती है तो आपको बिलकुल अच्छा नहीं लगता.
मैं आपको अपने बचपन की ऐसी ही एक बात बताती हूँ.तब हमारे यहाँ टी.vi. नहीं था और उस वक़्त इतवार की दूरदर्शन की फिल्म का बहुत क्रेज़ बच्चों में रहता था इसलिए हम पड़ोस में इतवार की फिल्म देखने जाते थे.तो परेशानी यह थी की पड़ोस की कुछ हमसे बड़ी लड़कियां हमें फिल्म देखते हुए देखकर हंसती थी तब ये हमें बहुत बुरा लगता था पर आज हम भी यही करते हैं और पुरानी बातों को सोचकर खूब हँसते हैं पर हाँ क्योंकि हमने खुद ये झेला है इसलिए जल्दी ही चुप हो जाते हैं क्योंकि हमें पता है की बच्चे इस तरह की बातों को गंभीरता से लेते हैं.क्यों बच्चों मैं सही कह रही हूँ न?

मंगलवार, 26 अक्तूबर 2010

bachchon tum ho phool salone

आज मैं अपनी छोटी बहन शिखा की प्रेरणा से बनाये गए इस ब्लॉग पर लिख रही हूँ.मेरी बहन और मैं दोनों ही बच्चो से बहुत प्यार करते हैं लेकिन जैसे की मेरी बहन बच्चों से बहुत प्यार करने के कारण उनकी बहुत सी गलतियों को माफ़ कर देती है मैं नहीं कर पाती.आज के बच्चे बहुत होशियार हैं लेकिन अपने बड़ों की कुछ नासमझियों के कारण असभ्य भी होते जा रहे हैं और यही असभयता है जो मैं झेल नहीं पाती.मेरे पापा मम्मी ने हमेशा मुझे बड़ों का सम्मान करना सिखाया है.उन्होंने ये कभी नहीं चाह की हम बच्चे बैठ कर बड़ों की बातों में शामिल hon क्योंकि यह एक तथ्य hai की बच्चे बड़ों के साथ बैठ कर उनकी ही बातें सीखेंगे इसलिए बच्चों की मासूमियत को बचाने के लिए बड़ों का योगदान ज़रूरी है.इसलिए मैं पहले बड़ों से ही सहायता मांगती हूँ की वे बच्चों को बच्चा ही रहने दे.
 अब बच्चों आप से मैं जो पूछ रही हूँ उसका बच्चो खुद जवाब देना मम्मी या पापा से मत पूछना.अब बताओ...
१-क्या आपको बड़ों में बैठना उनसे बाते करना अच्छा. लगता है यदि हाँ तो क्यों?
२-आप बड़ों से क्या उम्मीद करते हो?
३-आप अपने मित्र स्वयं बनाते हो या पापा मम्मी से पूछकर बनाते हो?
४-क्या आप अपने मित्र की सब बाते घर में बताते हो?
५-क्या आप अपनी मित्रता की लड़ाई में मम्मी पापा की मदद लेते हो?यदि हाँ तो क्यों?यदि नहीं तो क्यों?
तुम्हारे जवाब के इंतजार में....